यह साक्षरता का एक ऐसा मंदिर है जहां नन्हे मुन्ने नौनिहालों को जीवन जीने की कला सिखाई जाती है! लेकिन आज की साक्षरता पर भी जब कई प्रकार के प्रश्न चिन्ह लगाए जाते हैं तो वह केवल इसलिए लगाए जाते हैं कि केवल अपने जीविकोपार्जन के लिए ही विद्या ग्रहण नहीं की जाए! विद्या केवल पेट भरने तक ही सीमित ना रहे क्योंकि विद्या के माध्यम से पेट तो वैसे ही परमात्मा भर देंगे। लेकिन वह विद्या हमारी संस्कृति को हमारे संस्कार को हमारे धर्म को जागृत करने वाली होना चाहिए। तभी हमारे जीवन में वह विद्या सार्थक व सफल मानी जाएगी।
उक्त आशय के विचार रतनगढ़ में पधारे चित्तौड़ रामद्वारा के रामस्नेही संप्रदाय के परम पूज्य संत श्री रमताराम जी महाराज एवं उनके शिष्य संत श्री दिग्विजयराम जी ने अपने आशीर्वचनो के दौरान सुप्रीम अकैडमी स्कूल परिसर में विद्यालयीन बच्चों एवं सैफियह हायर सेकेंडरी स्कूल के बच्चों के मध्य व्यक्त किए। संत श्री ने कहा कि हमे जो यह मानव तन मीला है। बहुत दुर्लभ है, इसलिए हमेशा सतसंग एवं सतगुरु का साथ रखे ये हमे समझदार बनाते है।
संत श्री ने बताया कि यही नन्हें बालक बालिकाएं आने वाले कल को देश का भविष्य हैं। ये वही पीढी है जो समय आने पर देश समाज एवं राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व प्रदान करके राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा करते हैं। संत श्री ने राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा का दोहे के माध्यम से रौचक उदाहरण देते हुए बताया कि शास्त्रों में कहा भी गया है कि जो दृढ़ राखे धर्म को ताहि रखे करतार अर्थात् जो धर्म की रक्षा करता है। परमात्मा भी उसकी रक्षा करते हैं। संत श्री ने अपने आशिर्वचनो के दौरान आगे बताया कि आप और हम बहुत ही सौभाग्यशाली हैं कि भारत भूमि की ऐसी पवित्र धरा पर हमने जन्म लिया है।इसलिए हमें पढ़ाई के साथ ही राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा का भी संकल्प लेना चाहिए। संत श्री ने इस अवसर पर सभी बालक बालिकाओं को परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए एक राम नाम का गुरु मंत्र भी दिया एवं कहा कि इसके प्रतिदिन जाप करने से मन बुद्धि एवं आत्मा पवित्र होगी।
इसके पूर्व संत श्री ने मां सरस्वती की पूजा अर्चना कर कार्यक्रम की शुरुआत की स्कूल परिवार के प्रबंधक श्यामलाल स्वर्णकार, शब्बीर भाई बोहरा एवं सत्यनारायण ईनाणी ने संत श्री का पुष्प माला से स्वागत कर चरण वंदन किया। संचालन प्रिंसिपल योगेश शर्मा एवं आभार टिचर हिमांशु भंडारी के द्वारा किया गया।