गणेश उत्सव के दौरान बाजार में पीओपी और केमिकल से बनी मूर्तियां आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। लेकिन जब इन मूर्तियों का जल में विसर्जन किया जाता है तो इससे जल प्रदूषण बढ़ता है। केमिकल के कारण जल में रहने वाले जीव-जंतु मरने लगते हैं और वही पानी नहाने व पीने योग्य भी नहीं रह जाता।
इसी समस्या को देखते हुए सिंगोली की आस्था माहेश्वरी और उनकी दादी सुशीला देवी पिछले 10 वर्षों से एक अनोखी पहल कर रही हैं। दोनों हर साल घर पर ही मिट्टी से गणपति जी की प्रतिमा बनाती हैं। 10 दिनों तक विधि-विधान पूर्वक पूजन-अर्चन करने के बाद अनंत चौदस के दिन बाल्टी में पानी भरकर उसी में गणपति जी का विसर्जन करती हैं।
विशेष बात यह है कि विसर्जन के बाद बची हुई मिट्टी में एक पौधा लगाया जाता है। इससे न केवल पर्यावरण को लाभ मिलता है, बल्कि हवा भी शुद्ध होती है।
आस्था माहेश्वरी का कहना है कि मिट्टी के गणपति बनाने और घर पर ही विसर्जन करने से जल प्रदूषण नहीं होता। साथ ही पौधा लगाने से वातावरण शुद्ध होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
इस पहल से आस्था और उनकी दादी ने समाज को यह संदेश दिया है कि श्रद्धा के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा करना भी हमारी जिम्मेदारी है।